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सेक्युलरवादी सोच और बदनामी।।

  • सेक्युलरवादी सोच और बदनामी।।


    समझ नही आता इस बात की शुरुआत मैं कहाँ से करूँ, १९८४ के सिख विरोधी दंगे से करूँ जो भारतीय सीखो के खिलाफ थे इन दंगो का कारन था इंदिरा गाँधी के हत्या उन्ही के अंगरक्षकों द्वारा जो की सिख थे या फिर भागलपुर दंगा से करूँ जो १९८४ और २००२ के दंगे के कारण राजनितिक पार्टियां भागलपुर दंगे को भूल गई।। .

    25 साल पहले हुआ दंगा यूं ही इतना पीड़ादायी नहीं है भागलपुरवालों के लिए. कहा जाता है कि आजाद भारत में यानी 1947 के बाद यह सबसे लंबे समय तक चला दंगा है, जिसमें अनगिनत लोगों की जान गई थी. आजाद भारत में भी भागलपुर की तरह दंगे बहुत कम हुए हैं. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस दंगे में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सामाजिक कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संस्थाओं व स्थानीय लोगों का मानना है कि इस दंगे में कम से कम दो हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. वह भी ऐसे नहीं कि सिर्फ मार दिए गए, कहीं मारे गए, कहीं काटे गए, कहीं मारकर कुएं में फेंक दिया गया, कहीं तालाब में डाल दिया गया, तो कहीं खेत में डालकर उन पर हल चला दिया गया. लाशों के ऊपर खेती का अमानवीय कृत्य भी यहां हुआ. यह दंगा इसलिए भी एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है कि जब देश में सांप्रदायिक उन्माद का माहौल बनना शुरू ही हुआ था, तब उसके समानांतर अपराधियों, गिरोहबाजों, राजनेताओं और अधिकारियों ने आपसी गठजोड़ से दंगा भड़काकर इस तरह सरेआम लोगों का कत्लेआम करवाया था. लगभग छह महीने तक यह अराजकता भागलपुर की पहचान बनी रही।

    आज देश सिर्फ गुजरात दंगे की बातें ही याद रखना चाहती है,कुछ सेक्युलर सोच और घटिया राजनेता इस बात को भूल गए हैं कि दंगा कोई भी हो वो भारतीय इतिहास को बदल देता है और उसमे एक काला अध्याय जोड़ देता है, फिर नेता लोग सिर्फ गुजरात की बात को क्यों दोहराते रहते हैं वहां गोधरा कांड भी हुआ था जिसमे १०० से ज्यादा कार सेवकों को जिन्दा जला दिया गया था उन बातों को लोग क्यों नहीं दोहराते हैं। जहाँ एक ओर १९८४ सिख दंगे में ३००० से ज्यादा लोग मारे गए थे वही लोग सिर्फ गुजरात दंगे क्यों दोहराते हैं |

    यहाँ सेक्युलर नेता लोग सोचते हैं की अगर वोट लेना है तो मुस्लिम की तरफदारी करो सिर्फ उनके बारे में ही सोचो उनके लिए हिंदुओं को बरगलाना बहुत आसान है क्योंकि हिन्दू तो जातिवाद के नाम पर वोट देता है लेकिन मुस्लिम ऐसा नही है |

    हमें उनलोगों पे तरस आता है जो आज भी गुजरात दंगे का नाम और बदनामी का पूरा ठीकरा नरेंद्र मोदी पर थोपते हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी जी को क्लीन चीट दे दिया है | उनलोगों का हाल आजकल ऐसा हो गया जैसे बिन पानी के मछली ! जहाँ एक तरफ मोदी जी ने सबको साथ मिलकर गरीबी के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों से आवाहन किया है वही कुछ लोग आज भी २००२ में ही जी रहे हैं शायद उन्हें आजकल बंगाल दंगा दिखाई नही दे रहा है जहाँ २०० से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं जहाँ लोग हिन्दू के मंदिर और पंडाल को पूरी तरह से छतिग्रस्त कर दिया था अब कहाँ चले गए वो अवार्ड वापसी गैंग जो अपने आप को सबसे ज्यादा बुद्धिजीवी समझते हैं | सच में भारत में कुछ लोगों की सोच इस कदर गिर गया है की उन्हें सिर्फ अख़लाक़ के मौत पर ही इन्टॉलरेंस दीखता है बंगाल दंगे पर नही |

    आखिर हम कब तक इस तरह से अपने ही देश में उपेक्षित होते रहेंगे मुस्लिमो को इबादत के लिए २-4 घंटे की छुट्टी और हिंदुओं को उनके पूजा या कोई पर्व के दिन भी काम | सच में कुछ लोग हमारे देश की संस्कृति को इस्लामीकरण करना चाहते हैं लेकिन ऐसा संभव नही हो पायेगा जबतक देश में हिन्दू एक हो कर रहेगा | इसके लिए सभी हिन्दू को एक होना पड़ेगा वरना हमलोग हर वक़्त सेक्युलर वादी सोच का शिकार होते रहेंगे और बदनामी भी अपने कंधे ढोते रहेंगे |